ज़िंदगी मे जब हम असफल होते हैं तो टूट ही जाते है वास्तव मे ये असफलता किसी नये मुकाम पर पहुचाने के ही लिये हो सकती है ,जो होता है अच्छे के लिये ही होता है यही सोचने मे हमारी भलाई है । किसी ने कहा था जब भी गिरो रबर की गेंद के जैसे ही गिरना :तुरंत गिरकर ऊँचाई तक जाने लगती है ; लेकिन मिट्टी के ढेले जैसे गिरने का अर्थ नही हैं । वैसे इरादतन तो किसी को गिरने का शौक नही हैं यधपि गिरने के बाद भी निराश ना होकर के रबर की गेंद से सीख ली जा सकती है ।
बचपन की POEM भी कुछ यही सिखाती है जल्दी गिरकर जल्दी उठना EARLY TO BED AND EARLY TO RISE MAKES A MAN HEALTHY ,WEALTHY AND WISE...ज़िंदगी के संघर्षो मे गिरने के बाद हताश ना होकर फिर प्रयास करने मे स्वास्थय , धन, बुध्दिमानी है । और वास्तव मे गिरना और उठना वही सिक्के के दो पहलु हैं।
" संघर्षो मे शक्ति मिले I hope so"